हिन्दी वर्णमाला मे “ञ” अक्षर का प्रयोग कहाँ पर होता है, ञ से बने शब्द और नाम

बचपन में हिंदी वर्णमाला सीखते समय हम अक्सर, हमें यही सिखाया और पढाया गया, कि  से कुछ नहीं होता. और यह बात सच भी है कि हमें बचपन से ही यह सिखाया गया है, कि  से कुछ नहीं होता है, कई स्टूडेंट और विद्यार्थी ऐसे हैं, जिन्हें हिन्दी वर्णमाला मे ञ के बारे में मालूम ही नहीं है.

वो अक्सर यही सोचते हैं, कि ‘ञ’ का उपयोग कहाँ होता है? और  हिंदी वर्णमाला का फालतू व्यंजन है. लेकिन आप सोच कर देखिए अगर यह फालतू होता और हिन्दी वर्णमाला मे ञ का कोई प्रयोग नहीं होता तो, इसे हिंदी वर्णमाला में क्यों पढ़ाया जाता.

अब आप यह सोच रहे होंगे कि, हिन्दी वर्णमाला मे “ञ” अक्षर का प्रयोग कहाँ पर होता है, और क्या ञ से बनाया जा सकता है, जी हां, भले ही आज “ञ” अक्षर का प्रयोग बहुत कम या ना के बराबर होता है, लेकिन हिंदी वर्णमाला के इस वर्ण का प्रयोग करके कई शब्द और नाम लिखे जाते हैं चलिए जानते हैं, ञ से बने शब्द और नाम कौन से है.

हिन्दी वर्णमाला में ञ अक्षर का क्या प्रयोग है

हिंदी वर्णमाला और देवनागरी लिपि के अनुसार च वर्ग का पाँचवाँ व्यंजन  है. और हिंदी व्याकरण के अनुसार इसका उच्चारण तालव्य, स्पर्श, घोष, अल्पप्राण तथा नासिक्य से होता है,

इसके उच्चारण में श्वासवायु नाक के मध्यम से निकलता है. और इसके प्रभाव से स्वरतंत्रियों में कम्पन होता है. इसलिए इसे अनुनासिक ध्वनी भी कहते है, च वर्ग के इस पञ्चमाक्षर का प्रयोग संस्कृत में बहुत अधिक रूप से किया जाता है.

हिंदी में ‘ञ’ से न ही तो कोई शब्दों आरम्भ होता है, और न ही अंत नहीं होता अर्थात, मानक हिंदी में ञ का प्रयोग ना के बराबर किया जाता है,

अब Mordern Hindi में ‘ञ’ का प्रयोग एक अनुस्वार जैसी बिंदी की तरह प्रयोग किया जाता है. लेकिन कभी कभी हिंदी शब्दों के बीच में, ‘ञ’ का प्रयोग कर दिया जाता है. जैसे –

ञ अक्षर के नामञ अक्षर के नाम
पञ्चांगरञ्जन
आञ्जनेयपाञ्चजन्य
चञ्चलपांचजञ्य
पञ्चपञ्जाब
व्यञनचञ्चल
पश्चतपश्चञ्चया
वाञ्छतिसम्यञ्च
दृढ़सौहृदञ्चपञ्चैतानि

हिंदी भाषा मे ञ अक्षर का शब्द

संस्कृत में ञ से बने शब्द और नाम का प्रयोग

लेकिन हमारे प्राचीन भाषा संस्कृत में  व्यंजन का प्रयोग बहुत ही अधिक किया जाता है. संस्कृत के लगभग प्रत्येक शब्द में ञ का उपयोग किया जाता है. इस पञ्चमाक्षर का प्रयोग संस्कृत के कई श्लोक में किये जाते है, चलिए हम कुछ ञ से बने शब्द देखते है.

  • अनादरो विलम्बश्च वै मुख्यम निष्ठुर वचनम। पश्चतपश्च पञ्चापि दानस्य दूषणानि च।।
  • मूर्खस्य पञ्च चिह्नानि गर्वो दुर्वचनं तथा। क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः।।
  • मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्‌, मा स्वसारमुत स्वसा। सम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया।।
  • शनैः पन्थाः शनैः कन्थाः शनैः पर्वतलङ्घनम्।। शनैर्विद्याः शनैर्वित्तं पञ्चैतानि शनैः शनैः।।
  • उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं क्रियाविधिज्ञ व्यसनेव्यसक्तम्। शुर कृतज्ञं दृढ़सौहृदञ्च, लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः।।
  • त्याज्यं न धैर्यं विधुरेऽपि काले, धैर्यात् कदाचित् स्थितिमाप्नुयात् सः। जाते समुद्रेऽपि हि पोत भंगे, सांयात्रिकों वाञ्छति तर्तुमेव।।
  • चञ्चलं हि मनः कृष्णः! प्रमाथि वलवद् दृढ़म्। तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।

अब हिंदी में ञ का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता है?

हिंदी में ज्‌ और ञ का संयुक्त रूप ‘ज्‌ञ’ ‘ज्ञ’ होता है. उदारणार्थ, ‘ज्ञान’ का सही उच्चारण ‘ज्‌ञान’ होना चाहिए लेकिन पिछले दशको से इसे ‘ग्यान’ बोला जाता रहा है। आधुनिक हिंदी में ञ का प्रयोग लगभग ख़त्म ही कर दिया गया है, अब ञ के प्रयोग के बदले हम चन्द्र बिंदी का उपयोग कर लेते है. इसके कई प्रयोग और उदहारण देखा सकते है और समझ सकते है की ‘ञ’ का उपयोग कहाँ होता है? जैसे-

  • पञ्जाब – पंजाब
  • चञ्चल – चंचल,
  • रञ्जन – रंजन
  • सञ्झा – संझा
  • व्यञन – व्यंजन
  • ञ्चया – छाया

यदि आप हिंदी और संस्कृत के अच्छे ज्ञानी है तो, आप को यह बात समझ आ गई होगी की हिंदी वर्णमाला में पढ़ा जाने वाला अक्षर ञ कोई बेकार और फालतू शब्द नहीं है, इसका प्रयोग आदि के ऋषि मुनि शलोक और शब्दविन्यास में किया करते थे ञ का प्रयोग के साक्ष्य ऊपर के दिए गए संस्कृत के श्लोक पूर्ण रूप से देखा जा सकता है. अब आप भली भांति समझ चुके होंगे की ‘ञ’ का उपयोग कहाँ होता है?

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