जीरो का आविष्कार : दोस्तों स्कूल के गणित किताब से लेकर Bank के Cheque Book तक हमें शून्य (जीरो) देखने को मिलता है., यह कहना गलत नहीं है, कि अंको में जीरो का आविष्कार एक क्रांतिकारी आविष्कार था.
जीरो का खोज से पहले गणितज्ञों को गणना करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. आज के समय में जीरो का प्रयोग जटिल से जटिल गणित की घटनाओं को करने में किया जाता है.
इतना ही नहीं आज के Internet और Technology की दुनिया में उपयोग होने वाले Computer का Base जीरो ही है. क्योंकि कंप्यूटर केवल binary Language ही समझता है, और इस binary language में सिर्फ दो Number- 0 और 1 होते है. अब जीरो के इतने सारे प्रयोग और उपयोग सोच कर आपके मन में भी यह सवाल जरूर आ रहा होगा कि शून्य का आविष्कार कब हुआ? और जीरो का आविष्कार किसने किया
ज़ीरो का इतिहास और अविष्कार – Zero History in Hindi
भारत में पांचवी शताब्दी के आसपास शून्य की खोज हुई थी इसके आधार पर यह कहा जाता है, कि शून्य का आविष्कार भारत में पांचवी शताब्दी में हुई थी दरअसल तीसरी या चौथी शताब्दी में बख्शाली पांडुलिपि मे शून्य जैसी कोई चीज दिखाई दी थी बख्शाली पांडुलिपि भोजपत्र पर लिखी गई, एक प्राचीन भारत की गणित से सम्बन्धित पाण्डुलिपि है. यह पांडुलिपि अंक गणित विषय पर संस्कृत में लिखे गए सबसे पुरानी रचना है.
ऐसा कहा जाता है. की 1881 में एक किसान ने बख्शाली गाँव से खोदकर निकाला था. इस पांडुलिपि मे सनोबर के पेड़ के सात पत्ते को शून्य और बिंदु के रूप में दिखाया गया है. इसमें दिखाए गए बिंदु संख्यात्मक रूप में नहीं थे, बल्कि इस पांडुलिपि में इस बिंदु का प्रयोग अंको का निर्धारण और placeholder के रूप में किया गया था. पुराने समय में इन दस्तावेजों से व्यापारियों को गणितीय गणना करने में सहायता मिलती थी
इसके अलावा और भी कई सारी संस्कृति थे जिसमें इस बिंदु का प्रयोग संख्या का निर्धारण के लिए किया जाता था. जैसे बेबीलोन के लोग शून्य के बदले 2 पत्ते का उपयोग करते थे उसी तरह माया संस्कृति के लोगों ने शून्य का उपयोग शैल की संख्या के रूप में करते थे इसलिए हम ऐसा कर सकते है. की प्राचीन समय के लोगों को शून्य की अवधारणा के बारे में पता था. लेकिन उनके पास इसे दर्शाने के लिए कोई प्रतीक नहीं था.
oxford university के अनुसार भारत में स्थित ग्वालियर मे नौवीं शताब्दी के मंदिर के शिलालेख में वर्णित जीरो को सबसे पुराना माना जाता है.
शून्य का आविष्कार किसने किया? | Who invent Zero in hindi
भारत के एक विद्वान जिनका नाम पिंगला था. उन्होंने द्विआधारी संख्या (binary number) का इस्तेमाल किया और वह पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने शून्य के लिए संस्कृत शब्द शून्य का इस्तेमाल किया था..
628 ईसवी में ब्रह्मगुप्त गणितज्ञ विद्वान ने पहली बार शून्य और उसके सिद्धांतों को परिभाषित किया और पहली बार ब्रह्मगुप्त ने जीरो (शून्य) के लिए एक प्रतीक विकसित किया. इसके बाद ब्रह्मगुप्त ने ही maths calculation जैसे जोड़ घटाव गुणा भाग में प्रयोग करने के लिए शून्य से संबंधित कई सारे नियम के बनाएं
साथ ही साथ ब्रह्मगुप्त ने गणित के क्षेत्र में और भी कई सारे सिद्धांत दिए जिनमें चक्रीय चतुर्भुज का सिद्धांत महत्वपूर्ण है, उन्होंने अपने इस सिद्धांत में बताया कि चक्रीय चतुर्भुज के विकर्ण परस्पर लम्बवत होते हैं। ब्रह्मगुप्त के द्वारा दिए गए इस सिद्धांत के का प्रयोग करके चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्रफल का सन्निकट माल निकाला जा सकता है
इसके बाद महान गणितज्ञ और खगोल वैदिक वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली (Decimal system) के लिए शून्य का प्रयोग किया, इसलिए यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है, कि शून्य की खोज आर्यभट्ट नाम के गणितज्ञ वैज्ञानिक ने पांचवी शताब्दी में की, वही शून्य के सिद्धांतों की खोज ब्रह्मगुप्त ने किया, इन दोनों गणितज्ञ वैज्ञानिकों की इस खोज ने maths calculation को आसान बना दिया और इस प्रकार शून्य (Zero) का अविष्कार और खोज किया गया
जीरो का आविष्कार हुआ या खोज
खोज और आविष्कार में काफी अंतर होता है. दरअसल कोई चीज पहले से ही मौजूद हो और उसे कोई ढूंढ कर निकाल ले तो उसे हम खोज करते है. लेकिन किसी चीज को बनाया जाए तो उसे हम आविष्कार कहते है. जैसे सूर्य की खोज की गई लेकिन सूर्य की किरणों से बिजली बनने वाले solar panel का अविष्कार हुआ.
अक्सर कई लोग पूछते है, कि शून्य का आविष्कार किसने किया वहीं दूसरी तरफ शून्य की खोज किसने किया. तो हम ज़ीरो के आविष्कार और खोज के संदर्भ में या पता नहीं लगाया जा सकता है, कि शून्य का आविष्कार किसने किया लेकिन यह पता लगाया जा सकता है, कि शून्य की खोज किसने की.
क्योंकि शून्य का आविष्कार त्रेता युग से भी पहले हो चुका था. लेकिन इसके बारे में किसी को ज्ञात नहीं था. यही कारण है, कि रावण के 1शून्य सिर की गिनती वैदिक पुराणों में वर्णित और लिखित रूप से मौजूद है. हो सकता है, त्रेतायुग में शून्य को शून्य या जीरो ना बोलकर कुछ और कहा जाता हो लेकिन कलयुग में ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट ने इसे शून्य का नाम दीया
इसलिए ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट जैसे गणितज्ञों ने शून्य की खोज की क्योंकि शून्य का आविष्कार (Invention of Zero) त्रेता युग से पहले ही हो चुका था.
1 से 9 तक की संख्या का अविष्कार किसने किया
कई सारे स्रोतों से हमें जीरो की खोज (Invention of Zero) का प्रमाण मिलता है. लेकिन इसके बाद प्रयोग होने वाले 1-9 तक की संख्या के आविष्कार या खोज का प्रमाण नहीं मिलता है. इस बात का कोई प्रमाण नहीं है, कि 1-9 तक की संख्या कहां से आए और 1 से 9 तक गिनती की खोज किसने की?
इसलिए गणितज्ञों ने इसे प्राकृतिक रूप से गिने जाने वाले नंबर के रूप में माना और 1 2 3 4 5 6 7 8 9 तक की संख्या को प्राकृतिक संख्या यानी Netural Number कहा गया. लेकिन जीरो के आविष्कार और खोज के बारे में हमें पता है. इसलिए या प्राकृतिक संख्या नहीं है. शून्य न तो धनात्मक है, और न ही ऋणात्मक
यदि इस 1-9 तक की प्राकृतिक संख्या में जीरो को मिला दिया जाए तो इसे हम दाशमिक प्रणाली या Decimal Number system कहते है, और इस दाशमिक प्रणाली में 0123456789 मौजूद होते है. इसी डेसिमल नंबर सिस्टम से पूरे मैथमेटिक्स की गणना की जाती है.
शून्य एक संख्या क्यों नहीं है?
शून्य का उपयोग प्राकृतिक संख्याओं के साथ किया जाता है. लेकिन जीरो के पास खुद का कोई वैल्यू नहीं होता है., अब यहां सवाल आता है, कि क्या जीरो एक संख्या है, या नहीं? और यदि ऐसा नहीं है. तो शून्य एक संख्या क्यों नहीं है?
जीरो एक संख्या है, या नहीं? जीरो के इस संदर्भ में कहा जाए तो, जीरो एक संख्या है. लेकिन Counting Number नहीं है. यानी जीरो अकेले कुछ नहीं है. इसलिए यह संख्या होते हुए भी इसका प्रयोग Counting (गिनती) शुरू करने के लिए नहीं की जा सकती है. इसलिए जीरो काउंटिंग नंबर नहीं है, लेकिन एक संख्या है.
शून्य एक सम संख्या है. या विषम संख्या?
यदि आप Mathematics के स्टूडेंट है. तो एक सवाल आपको हमेशा परेशान करता होगा कि क्या शून्य सम या विषम संख्या है? चलिए इसे हम एक उदाहरण से proof करके खुद देखते है, कि शून्य एक सम संख्या है, या विषम संख्या?
दरअसल विषम संख्या पर Defination देखा जाए तो विषम वह संख्या होती है. जिसे 2 से विभाजित करने पर एक से समझता है. तो चलिए हम पता करते है, कि क्या शून्य एक विषम संख्या है, या नहीं-
0/2 = 0
जब हमने शून्य को 2 से डिवाइड किया तो हमें शून्य प्राप्त हुआ, अतः हम कह सकते है, कि जीरो (शून्य) विषम संख्या नहीं है.
चलिए हम पता करते है, कि क्या शून्य एक सम संख्या है, या नहीं? यदि हम सम संख्याओं का Defination देखे तो सम (even) वह संख्या होती है. जो 2 द्वारा पूर्णतः विभाज्य (DIVIDABLE) हो जाए, और विभाजित करने पर शून्य प्राप्त हो चलिए अब हम जीरो को 2 से भाग देकर देखते है.
0/2 = 0
जब हमने शून्य को 2 से divide किया तो हमें शून्य प्राप्त हुआ, अतः हम कह सकते है, कि जीरो (शून्य) सम संख्या है.
ऊपर के दोनों उदाहरण में हमने देखा के शून्य को 2 से डिवाइड करने पर हमें शून्य प्राप्त होता है. इसलिए शून्य एक सम संख्या है.
क्या शून्य एक परिमेय संख्या है?
क्या शून्य एक परिमेय संख्या है, या नहीं इस बात को जाने से पहले हम जानते है, कि परिमेय संख्या क्या होती है. –
परिमेय संख्या – वैसे संख्या जिसे a/b के रूप में लिखा जा सके अर्था.त वैसे संख्या नीचे से भिन्न रूप मे लिखा जा सके (जहाँ P और q पूर्णांक संख्या है.) उसे हम परिमेय संख्या कहते है. जैसे 4, 2/3, 0.001, 2/10
अपरिमेय संख्या- वैसे संख्या जिसे भिन्न के रूप में मतलब a/b के रूप में नहीं लिखा जा सके उसे हम अपरिमेय संख्या कहते है. जैसे √2, √3, π इत्यादि
चुकी 0 को कई सारी संख्याओं के साथ a/b के रूप में लिखा जा सकता है. जैसे 0/1, 0/2, 0/3, 0/4, 0/5 इसलिए 0 एक परिमेय संख्या है.
शून्य की खोज किसने की? शून्य ki khoj kisne ki?
दोस्तों यदि आपने ऊपर की पोस्ट को ध्यान से पढ़ा होगा तो आपको शून्य के इतिहास से जुड़ी कई सारी बातें जैसे शून्य का आविष्कार कब किसने और कहां किया इस विषय के अलावा हमने शून्य से जुड़ी और देख कई सारी कांसेप्ट जैसे शून्य संख्या सम विषम परिमेय अपरिमेय पर आपको पूरी जानकारी मिल चुकी होगी
हमें उम्मीद है, कि आपको शून्य की खोज (Invention of zero in hindi) से जुड़ा यह पोस्ट जरूर पसंद आया होगा. यदि आपके मन में जीरो का आविष्कार से जुड़ा कोई भी प्रश्न हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते है.